नेपाल को मधेसी समस्याओं को दूर करने की ज़रूरत

नेपाल की राष्ट्रीय जनता पार्टी या राजपन द्वारा के.पी. शर्मा ओली सरकार से समर्थन वापिस लिए जाने की घोषणा करना इसका साफ़ संकेत है कि भारत के सीमावर्ती अपेक्षाकृत शांत और स्थिर मधेस क्षेत्र में लोगों के बीच नाराज़गी बढ़ रही है। राजपन नेतृत्व ने घोषणा की है कि वे लोगों से सम्पर्क स्थापित करेंगे और हाशिए पर पहुँचे समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलन को फिर से शुरू करेंगे। उन्होंने नेपाल सरकार पर इस क्षेत्र में विफल होने का आरोप लगाया है। दल ने ओली सरकार पर 2015 में नेपाल में नए संविधान के लागू होने के ख़िलाफ़ मधेश और थारू आंदोलन के दौरान जेल भेजे गए व्यक्तियों पर कथित झूठे आरोप वापिस न लेने का आरोप लगाया है

कैलाली ज़िला न्यायालय ने पश्चिमी नेपाल में राजपन सांसद रेश्म चौधरी और दस अन्य को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। इस फ़ैसले के कुछ घंटों बाद ही राजपन ने समर्थन वापिस लेने का फ़ैसला किया। उन पर 2015 में टीकापुर हिंसक मामले में सीधे शामिल होने का आरोप लगाया गया था जिस में नेपाल पुलिस के एक वरिष्ठ अधीक्षक सहित एक छोटा बच्चा भी मारा गया था। ये आंदोलन नए संविधान में प्रस्तावित फेडरल गणराज्य की सात राज्य संरचना के विरोध में था। आंदोलनकर्ताओं ने देश के पश्चिमी क्षेत्र में थारू समुदाय के लिए अलग से थारू राज्य की प्रमुख मांग की थी। आरोपियों पर तत्कालीन सरकार द्वारा 2015 में मामला दर्ज किया गया था।

हालांकि राजपन का फ़ैसला राजनीतिक विश्लेषकों के लिए कोई हैरानी की बात नहीं है। इस मुद्दे पर मधेसी नेता प्रधानमंत्री से मिलने की कोशिश समेत सभी प्रयास करते रहे हैं। लेकिन उनके द्वारा समर्थन वापिस लेने से सरकार के अस्तित्व पर तुरंत कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। प्रतिनिधि सभा में उन के 17 सांसदों के बिना भी नेपाल संसद के निचले सदन में सत्ताधारी साम्यवादियों के पास उपेन्द्र यादव नेतृत्व वाले मधेस क्षेत्र में अन्य प्रमुख ताक़तों और संघीय सामाजिक मंच के सहयोग से दो तिहाई बहुमत है।

राजपन के समर्थन वापिस लेने के बाद ओली सरकार ने मधेसी नेता सी.के. राउत के साथ 11 सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जो कि अलग मधेस प्रांत की मांग के लिए एक झटका है। राउत आज़ाद मधेस आंदोलन का नेतृत्व करते रहे हैं। मधेस में बढ़ती अलगाववादी ताक़तों को नियंत्रित करने के नज़रिए से ओली सरकार द्वारा इस समझौते को एक सकारात्मक क़दम माना गया है।

राजपन का गठन अप्रैल 2017 में मधेस आधारित संयुक्त लोकतांत्रिक मधेसी मोर्चा के 6 क्षेत्रीय दलों को मिलाकर किया गया था। इस का सरकार पर आरोप था कि मधेसी, थारू और जनजाती सहित हाशिए पर आए वर्गों की सामाजिक न्याय की मांग को पूरी करने के लिए दो तिहाई से अधिक बहुमत के बावजूद सरकार संविधान में संशोधन नहीं कर रही है। इसका ये आरोप भी था कि सरकार प्रांतों को विकासीय ताक़त प्रदान ना करके और नौकरशाही से सही से काम न करवाकर संघीय संरचना को कमज़ोर कर रही है। ये गंभीर आरोप हैं और मधेस क्षेत्र में समाज के बड़े तबके की भावनाओं को ठेस पहुँचा सकते हैं, जो कि नेपाल की आबादी का लगभग आधा हिस्सा है। एक प्रतिष्ठित मधेसी नेता राजेन्द्र महतो और राष्ट्रीय जनता दल नेपाल की स्थाई स्मिति के सदस्य ने कहा कि नेपाल समाज के हाशिए पर आए वर्गों के लिए समानता और सामाजिक न्याय के लिए लड़ने के लिए सभी प्रगतिवादी ताक़तों को एकजुट करते हुए राजपन सत्ताधारी नेपाल साम्यवादी दल और मुख्य विपक्ष नेपाली कांग्रेस का विकल्प गठित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन करेगी।

हालांकि अभी ओली सरकार सुरक्षित है लेकिन फिर भी राजपन द्वारा समर्थन वापिस लेने का गहरा मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इस दल का मधेस क्षेत्र में लोकप्रिय आधार है। नेपाल का सत्ताधारी दल मधेस क्षेत्र के बड़े हिस्से की भावनाओं की अनदेखी नहीं कर सकता। सत्ताधारी नेपाल नेतृत्व को मधेस मुद्दों को सुलझाने के लिए तथा हालात को और बिगड़ने से रोकने के लिए गंभीर प्रयास करते हुए ऐसा समाधान निकालना होगा जो सभी को मंज़ूर हो।

आलेख – रतन साल्दी, राजनीतिक समीक्षक

अनुवाद- नीलम मलकानिया