भारत और अमरीका के दरम्यान कूटनीतिक और सुरक्षा मामलों पर बातचीत के नवें दौर में अनेक चुनौतियाँ हावी रहीं। इनमें अमरीका द्वारा ईरान और रूस पर लगाई गईं पाबंदियाँ, भारत को इन मुल्कां से तेलखरीद की समयसीमा के विस्तार, ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत को सामान्य वरीयता व्यवस्था यानि जी.एस.पी. से बाहर करने की चेतावनी, भारत को वेनेजुएला से खजिजईंधन न खरीदने की ताकीद, व्यापारस्पर्धा और एच वन बी वीज़ा संबंधी मुद्दे शामिल हैं।
इन मसलों के समाधान के लिए भारतीय विदेशसचिव विजय गोखले और विदेशमंत्रालय के निःशस्त्रीकरण तथा अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा विभाग के अतिरिक्त सचिव इन्द्रमणि पाण्डेय ने पिछले दिनों वॉशिंगटन डी.सी. में सम्बद्ध पक्षों से बातचीत की। इनमें अमरीकी शस्त्र नियंत्रण और अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के उपमंत्री एन्डेरा थॉम्सन और वरिष्ठ मन्त्री डॉ. यलीम डी.एस. पॉब्लेट शामिल थे। दोनों पक्षों ने तय एजेंडे के साथ ही तीसरी भारत–अमरीका अन्तरिक्ष वार्ता के तहत अहम मुद्दों पर चर्चा की।
नवीं भारत–अमरीका बातचीत सौहार्दपूर्ण और सकारात्मक माहौल में सम्पन्न हुई। इस दौरान आपसी हित के तमाम मसलों पर विस्तार से चर्चा की गई। इनमें परमाणु अप्रसार, आणविक शस्त्रों को आतंकी तत्त्वों से बचाने, नागरिक परमाणु सहयोग को मज़बूत करने, भारत में अमरीकी परमाणु रिएक्टरों की स्थापना और परमाणु आपूर्ति समूह में भारत की शुमारगी शामिल हैं। इनके अलावा अन्तरिक्ष में मौजूदा चुनौतियों से निपटने, नए मौकां की तलाश और इस क्षेत्र में आपसी तथा सामूहिक सहयोग गहराने के तौर–तरीकों पर भी बात की गई।
हालिया बातचीत ऐसे माहौल में हुई है जबकि भारत पुलवामा में पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश ए मुहम्मद द्वारा सी.आर.पी.एफ. के काफिले पर फिदायीन हमले में जवानों की शहीदी को लेकर आक्रामक तेवर अपनाए हुए है। ट्रम्प प्रशासन ने इस कायराना हमले की तीखी आलोचना की है और पाकिस्तान से उसकी सरज़मीं पर पसरे आतंकवाद पर सख्त कदम उठाने की ताकीद की है। उसने पाकिस्तान को भारत के खिलाफ गै़रकानूनी तौर पर एफ 16 विमानों के इस्तेमाल पर चेतावनी भी दी है। बातचीत के बाद जारी संयुक्त घोषणापत्र में व्यापक एजेंडे को देखते हुए किसी खास वाकये की चर्चा से परहेज़ रखा गया।
पिछले कुछ वक्त से अमरीका ने पाकिस्तान की तरफ अपने रवैये में तल्खी का इज़हार किया है। उसने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के खिलाफ माकूल कार्रवाई में नरमी के चलते उसको दी जाने वाली माली सहायता में भी भारी कटौती कर दी है। ऐसा लगता है कि अमरीका की इस सख्ती का पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को शह देने की नीति पर खास असर नहीं पड़ा है। पुलवामा में भारतीय सुरक्षाबलों पर आत्मघाती हमले और अफगानिस्तान में जारी हिंसा से यह साफ है कि पाकिस्तान ने अमरीका द्वारा आतंकवाद के सफाए के लिए दी गई मदद का वाजिब इस्तेमाल नहीं किया है। इससे न केवल पाकिस्तान के करीबी मुल्कों में आतंकी हमलों में इज़ाफ़ा हुआ है; बल्कि दक्षिण एशिया में अमरीकी हितों को भी चोट पहुँची है।
माना जा रहा है कि बातचीत के दौरान भारतीय शिष्टमंडल ने आतंकवाद से निपटने में चीन के असहयोग का मुद्दा भी उठाया। चीन; जिन्ज़ियांग में आतंकवाद के बढ़ते खतरे पर चिन्ता जताने के बावजूद, मसूद अज़हर के मुद्दे पर संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा कठोर कार्रवाई के लिए सहमत नहीं है। उसके वीटो के कारण सुरक्षा परिषद में अबतक मसूद को अन्तर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित नहीं किया जा सका है।
बातचीत के दौरान भारत अमरीका व्यापार से जुड़े मुद्दों के जल्द समाधान पर भी बल दिया गया। हालांकि दोनों पक्ष इस बात पर सहमत दिखे कि आपसी व्यापारिक विवादों का सौहार्दपूर्ण समाधान खोजा जाना चाहिए। वॉशिंगटन और नई दिल्ली के बीच प्रतिरक्षा मामलों में अहम सहयोग को देखते हुए अन्य मुद्दों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों ट्रम्प प्रशासन ने एल्यूमीनियम और स्टील पर कर में एकतरफा तौर पर इज़ाफा कर दिया था। इसके अलावा एच वन बी वीज़ा पर भी अतिरिक्त पाबंदियाँ लगा दी गई थीं। भारत द्वारा बौद्धिक सम्पदा प्रावधानों का हवाला दिए जाने पर अमरीका ने उसे सामान्य वरीयता व्यवस्था यानि जी.एस.पी. से बाहर करने की चेतावनी दी। अगर वह ऐसा करता है तो अमरीका को भारतीय निर्यात में तकरीबन 5 बिलियन डॉलर की कमी आ सकती है।
भारत का मानना है कि इन मुद्दों का समाधान जल्दी से जल्दी और बातचीत के माध्यम से निकाला जाना चाहिए। भारत–अमरीका सुरक्षा और कूटनीतिक वार्ता के बाद आर्थिक और प्रतिरक्षा बातचीत का आयोजन होना चाहिए; क्योंकि इन सभी मुद्दों पर समग्र चर्चा से ही दोनों पक्षों के बीच सन्तुलित रिश्तों की स्थापना हो पाएगी।
आलेख – चिन्तामणि महापात्र, समउपकुलपति और अध्यक्ष; अमरीकन अध्ययन केन्द्र, जे.एन.यू.
अनुवाद और वाचन – डॉ. श्रुतिकान्त पाण्डेय