भारत का मिशन चंद्रयान-2

भारत के दूसरे चंद्रयान मिशन “चंद्रयान-2” का इस साल जुलाई में प्रक्षेपण करने की योजना है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद् (इसरो) के मुताबिक इसमें देश के विभिन्न अनुसंधान संगठनों द्वारा विकसित अंतरिक्ष उपकरण होंगे, जिससे वैज्ञानिक प्रयोगों और डाटा की लंबी श्रंखला को लागू कर पाना संभव होगा। 3.8 टन वाले इस अंतरिक्ष यान में तीन मोड्यूल हैं- ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान)। नासा के निष्क्रिय प्रायोगिक मॉड्यूल का उद्देश्य पृथ्वी और उसके प्राकृतिक उपग्रह के बीच की दूरी को मापना है। अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार चंद्रयान-2 के सभी मॉड्यूल्स को 9 से 16 जुलाई के बीच प्रक्षेपित किया जाएगा और 6 सितंबर को इनके चाँद पर उतरने की उम्मीद है। ऑर्बिटर चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की परिक्रमा करेगा, जबकि लैंडर(विक्रम) चाँद के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग करेगा, और रोवर (प्रज्ञान) चंद्रमा के आसपास प्रयोगों को संचालित करेगा। चंद्रयान-1 में चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की गई थी। यह एक बड़ी सफलता थी। इसके तहत पाँच विदेशी अंतरिक्ष उपकरणों को भी चाँद पर भेजा गया था, जिसमें तीन उपकरण यूरोप और दो उपकरण अमरीका से निर्मित थे। चंद्रयान-2 तकनीक के मामले में काफी अत्याधुनिक है, और यह चाँद पर भेजा जाने वाला सर्वश्रेष्ठ मिशन होगा। इसरो के अध्यक्ष डॉ. के. सिवान ने कहा कि पाँच पैरों वाला वाहन लैंडर अर्थात् विक्रम 6 सितंबर या इसके आसपास चंद्रमा पर उतरेगा, और रोवर (प्रज्ञान) इसके के चारों ओर विभिन्न पहलुओं की जाँच करेगा। प्रज्ञान, चाँद की सतह पर 300-400 मीटर तक के विभिन्न रहस्यों पर से पर्दा उठाने का काम करेगा। चाँद पर करीब 14 दिन तक रहने के दौरान प्रज्ञान अलग-अलग वैज्ञानिक प्रयोग करेगा। रोवर, चाँद की सतह से संबंधित सामग्री का विश्लेषण कर, ऑर्बिटर की मदद से केवल 15 मिनट के अंदर डाटा और तस्वीरें पृथ्वी पर भेजेगा। 3,800 किलोग्राम के इस अंतरिक्ष यान में एक ऑर्बिटर शामिल है, जो 100 किलोमीटर की दूरी से चंद्रमा की परिक्रमा करेगा। डॉ. के. सिवान ने कहा कि इसरो ने अब तक जितने भी मिशन लॉन्च किए हैं, उनमें चंद्रयान-2 सबसे जटिल मिशन है। चंद्रयान-2 को सॉफ्ट लैंडिंग के अनुसार तैयार किया गया है, जबकि इसकी तुलना में चंद्रयान-1 में ये सुविधा नहीं थी। जनवरी में इसरो ने कहा था कि हम चांद दक्षिणी ध्रुव पर उतरने जा रहे हैं, यह वो स्थान है, जहाँ अभी तक कोई नहीं पहुँचा है। चंद्रयान-2 करीब दस वर्ष पूर्व लॉन्च किए गए चंद्रयान-1 का उन्नत रूप है। चंद्रयान-1 में 11 अंतरिक्ष उपकरण थे, जिसमें 5 भारतीय, 3 यूरोपीय, 2 अमरीकी और 1 बुल्गारिया का अंतरिक्ष उपकरण शामिल है। इस मिशन को चाँद पर पानी की खोज करने के लिए जाना जाता है। यदि भारत चंद्रयान -2 को चाँद की सतह पर सफलतापूर्वक उतारता है, तो वह ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। ऐसा करने वाले तीन अन्य देशों में रूस, अमरीका और चीन शामिल हैं। हालाँकि इज़राइल भी इस श्रेणी में शामिल होने का प्रयास कर रहा था, मगर 12 अप्रैल को उसका बेरेशीट अंतरिक्ष यान इस मिशन में लगभग विफल रहा। बेरेशीट ने एक प्लेन सतह पर उतरने की कोशिश की। यह सतह लावा के जमने के बाद आई थी। इसे सी ऑफ सेरेनिटी भी कहा गया। मगर बेरेशीट अपने इस मिशन में असफल रहा। लेकिन चंद्रयान-2 दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। यह वो स्थान है जहाँ चीन के अलावा आज तक किसी भी देश ने अपने अंतरिक्ष यान को उतारने का प्रयास नहीं किया। यह ध्यान देने वाली बात है कि इस वर्ष जनवरी में चैंग-4 अंतरिक्ष यान को डार्क साइड पर उतारा था। यह स्थान पृथ्वी से काफी दूर है और तुलनात्मक रूप से अभी अज्ञात भी है। चंद्रयान-2 की सफलता से इसरो की उपलब्धियों में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा, जिस पर पूरे देश को गौरव का अनुभव होगा। भारत के अंतरिक्ष संगठन ने अपने काम और उपलब्धियों के दम पर अंतरिक्ष प्रक्षेपण के क्षेत्र में पहले से ही अग्रणी स्थान प्राप्त कर लिया है। ऐसे में यह निश्चित है कि चंद्रयान-2 मिशन, इसरो की उपलब्धियों में सफलतापूर्वक शामिल होगा।

आलेख – योगेश सूद, पत्रकार

अनुवाद – डॉ. प्रवीन गौतम