ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने घोषणा की है कि उनके देश ने संयुक्त समग्र कार्ययोजना यानि जे.सी.पी.ओ.ए. के तहत अपने पुराने वायदों से पीछे हटने का फैसला किया है। यह घोषणा मध्य एशिया में अमरीका द्वारा डोनाल्ड ट्रम्प की कमान में सैन्य तैनाती की प्रतिक्रिया स्वरूप की गई है। ज्ञातव्य है कि ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनने के बाद परमाणु समझौते को मानने से इन्कार कर दिया था। जे.सी.पी.ओ.ए. को अस्वीकार करने के बाद अमरीकी राष्ट्रपति ने ईरान के खिलाफ एक के बाद एक फैसले किए, जिससे वॉशिंगटन और तेहरान की दूरी लगातार बढ़ती जा रही है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपनी ईरान नीति के तहत निहायत गै़र-समझौतावादी रुख अख्तियार किया है। इसके चलते जे.सी.पी.ओ.ए. के अनुपालन के कारण ईरान से हटाए गए प्रतिबन्धों को फिर से लागू कर दिया गया है। इसके बाद अमरीका ने ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर या आई.आर.जी.सी. को आतंकी संगठन घोषित कर दिया। यह पहला मौका है जब अमरीका ने किसी विदेशी सरकार के पूरे संगठन को ही आतंकी घोषित किया है। इसके अगले चरण के तौर पर अमरीका ने पिछले महीने ईरान से तेल खरीदने वाले मुल्कों जिनमें भारत, चीन और दक्षिण कोरिया शामिल हैं, को अभी तक उपलब्ध राहतसीमा बढ़ाने से मना कर दिया। जबकि इससे पहले, बराक ओबामा के कार्यकाल में राहत जारी रखने की परम्परा रही है। ट्रम्प के इन फैसलों से ईरान और अमरीका के बीच विवाद बढ़ना स्वाभाविक है। हाल ही में जारी अमरीकी खूफिया विभाग की रिपोर्ट में ईरान द्वारा मध्यपूर्व में अमरीकी ठिकानों पर हमले की आशंका से तनाव चरम पर पहुँच गया है। इन रिपोर्टों के बाद ही अमरीका ने अपने नौसैनिक युद्धपोत अब्राहम लिंकन को मध्यपूर्वी क्षेत्र में तैनात करने का फैसला किया। अमरीका के इस कदम की प्रतिक्रिया में ईरान ने सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाकर हालिया परिदृश्य की समीक्षा की और जे.सी.पी.ओ.ए. के अनुपालन की अपनी नीति से मुकरते हुए कुछ पुराने वायदों से पीछे हटने की घोषणा कर दी। सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी है। हालांकि उन्होंने शेष विश्व को यकीन दिलाया है कि हालिया फैसले का मतलब ईरान का जे.सी.पी.ओ.ए. से बाहर होना नहीं है, बल्कि यह मौजूदा हालातों में उठाया गया महज़ एक अस्थायी कदम है। इस फैसले का मतलब ईरान द्वारा यूरेनियम संसाधन जारी रखना और स्वयंस्वीकृत 60 दिनों की समयसीमा को लम्बित करना है। इस बीच, समझौते में शामिल अन्य पक्षों ने अमरीका द्वारा परमाणु समझौते से कदम खींचने और ईरान के खिलाफ प्रतिबन्ध जारी रखने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। समझौते के अहम पक्ष के तौर पर यूरोपीय संघ ने अपनी तरफ से यथास्थिति बनाए रखने की पुरज़ोर कोशिश की; लेकिन दुर्भाग्य से उसका प्रयास सफल नहीं हो सका। अगर हालिया तनाव जारी रहता है और ईरान अपने फैसले पर कायम रहता है; तो अमरीका इस मामले को संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जा सकता है, जिससे दोनों मुल्कों के बीच तनाव के और बढ़ने की आशंका है। ऐसे वक्त पर यूरोपीय संघ समेत अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को दोनों पक्षों से बातचीत करनी चाहिए ताकि अमरीका और ईरान बातचीत पर राज़ी हों और समस्या का कोई शान्तिपूर्ण समाधान तलाशा जा सके। पिछले काफी वक्त से एक के बाद एक समस्या के चलते मध्यपूर्व लगातार तनाव की जद में रहा है। ऐसे में ईरान और अमरीका के दरम्यान नए विवाद से हालात और बदतर हो सकते हैं, जिनका असर दुनिया के दूसरे देशों पर भी होना स्वाभाविक है। भारत का सदा से कहना है कि वह किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर संयुक्तराष्ट्र के फैसले का सम्मान करेगा, किसी एक देश का नहीं। भारत दोनों पक्षों के बीच बातचीत और शान्तिपूर्ण समाधान के पक्ष में है। अमरीका द्वारा ईरान पर फिर से प्रतिबन्ध चस्पाने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर विपरीत असर हो रहा है। ईरान अरसे से भारत का प्रमुख तेल निर्यातक रहा है। भारत के ईरान और अमरीका दोनों से मैत्री सम्बन्ध रहे हैं। वह इनमें से किसी के साथ सम्बन्धों में खटास से बचना चाहता है, इसलिए बातचीत और शान्तिपूर्ण समाधान की बात कर रहा है। [audioplayer file="http://airworldservice.org/hindi-commentary/Hindi--Sam-Varta-12-May-19.mp3"]